बाबा नाम केबलम ,आनन्द वचनामृतम् ' , " साधना का मन्थन " , पृष्ठ- 98-99 ( खण्ड - षडविंश ) | 🌹बाबा नाम केवलम् |,🌹बाबा लीला आचार्य रामेश्वर जी, श्री श्री आनन्दमूर्तिजी*l
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श्री श्री आनन्दमूर्तिजी*
*कभी ऐसा मत सोचो कि यह मन बहुत अपवित्र है! जो भावना मन में नहीं आनी चाहिए वह भावना आती है, इसलिए मन अपवित्र है। यह मन परम पुरुष को कैसे समर्पित करुंगा ऐसा मत सोचो। मन जब परमपुरुष को दोगे अर्थात परमपुरुष से जब मोहब्बत करोगे तब कहोगे मैं भला-बुरा जो भी हूं, मैं तेरा हूं। हो सकता है फूल में कीचड़ लगा हुआ हो, मगर यह फूल तुम्हारा है, तुम ले लो। यही भावना ठीक है यही भावना ठीक है कि मैं अच्छा हूं या बुरा हूं मैं तुम्हारा हूं। मैं तुम्हारा पुत्र हूं। मैं तुम्हारी पुत्री हूं। इसलिए मैं स्वयं को तुम्हारे सामने समर्पित कर रहा हूं। मुझको अपनी गोद में बैठा लेना तुम्हारा फर्ज है क्योंकि मैं तुम्हारा हूं। अगर तुम मुझको अपनी गोद में नहीं लोगे तो मैं कहां जाऊंगा? मुझे बता दो। इसलिए याद रखोगे कि किसी भी हालत में अपने को परम पुरुष के सामने समर्पित करने मे घबड़ाओगे नहीं, हिचकिचाओगे नहीं।यह हर मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है।*
*श्री श्री आनन्दमूर्तिजी*
🚩 आनन्द वचनामृतम् 🚩
एक माँ के तीन बेटे हैं - ज्ञानी, कर्मी, व भक्त | ज्ञानी सोचता है - माँ रसोई में है, इस समय उनको फुरसत नहीं है | फुरसत मिलेगी तब आयेगी | तब तक मैं कुछ पढ लूँ | कर्मी सोचता है -माँ बर्तन साफ कर रही है, मैं कमरा साफ कर लूँ | भक्त न कुछ सोचता है न कुछ करता है | वह बस चिल्ला -चिल्ला कर माँ को बुलाता है और माँ को काम छोड़कर आकर उसे गोद में उठाना पड़ता है | इसलिए बुद्धिमत्ता है परमपुरुष के सम्पर्क में आने में | भक्त के लिए भगवान ही सब कुछ हैं | वे सभी मालिकों के मालिक हैं, ईश्बरों के ईश्वर हैं, अत: महेश्वर हैं | इस दुनियाँ में परमपुरुष की जितनी अभिव्यक्तियाँ हैं, अर्थात जितने देवता हैं, वे उन सबके कारण हैं, अर्थात महादेव हैं | भगवान ही सचमुच सब के राजा हैं, बाकी राजा नाटक में राजा का पात्र मात्र किए हुए हैं |
श्री श्रीआनंदमूर्तिजी |
' आनन्द वचनामृतम्
' , " साधना का मन्थन " , पृष्ठ- 98-99 ( खण्ड - षडविंश ) |
🌹बाबा नाम केवलम् |🌹बाबा लीला
आचार्य रामेश्वर जी
संभवत 60 के दशक की कहानी संसद सदस्य शशि रंजन जी के पुत्र के कमर में भारी दर्द बरसों से पीड़ित किए हुए था फल स्वरूप व सीधा हो कर चल नहीं सकता था । शशि रंजन जी ने उसकी इलाज की काफी चेष्टा की। देश-विदेश के बड़े-बड़े डॉक्टरों को उन्होंने उसे दिखाया, परंतु किसी के भी उपचार से वह निरोग नहीं हुआ, शशि रंजन जिसके कारण बहुत निराश तथा दुखी रहा करते थे। शशि रंजन जी पुराने आनंद मार्गी साधक थे तथा वे अनन्य बाबा-- -भक्त थे। अपने गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी के प्रति निष्ठा और आंतरिक ता में कोई कमी नहीं थी। एक बार बाबा दिल्ली से विदेश यात्रा के लिए रवाना हो रहे थे शशि रंजन जी हवाई अड्डा पर बाबा को विदा करने के लिए हुए थे ।यहां पर बाबा ने उनसे पूछा --"सब समाचार ठीक है ना" उत्तर में शशि रंजन जी के मुख से अनायास अपने पुत्र की बीमारी की बात निकल गयी । उन्होंने अत्यंत निराश भाव से उन्हें उत्तर दिया कि "उनका पुत्र कमर दर्द की असह्य यंत्रणभोग रहा है"। बाबा ने तब कहा वर्धमान के डॉक्टर सेलेन मुखर्जी से इस लड़के को दिखाओ। बाबा के प्रति अन्नय आस्था के वशीभूत शशि रंजन जी अपने पुत्र को लेकर बर्दमान पहुंचे ।उनको उनके मन में विचार था कि बाबा ने कहा है तब निश्चय ही शैलेन मुखर्जी कोई बड़े डॉक्टर होंगे तथा सभी लोग जानते होंगे। पता न होने के कारण उन्होंने बहुत लोगों से डाक्टर शैलेन मुखर्जी के बारे में पूछा । उन्हें उम्मीद थी कि किसी ना किसी से पता मालूम हो ही जाएगा क्योंकि शैलेन मुखर्जी जरूर कोई नामी गिरामी डॉक्टर होंगे परंतु किसी भी व्यक्ति से डॉक्टर साहब का अता पता नहीं चला ।चार-पांच दिनों तक रोज वे बर्धमान का चप्पा चप्पा छान ते रहे, परंतु निराश होकर वह वापस लौटने की बात सोचने लगे ।तभी उन्हें शहर के बाहर एक छोटी मामूली बस्ती में डॉक्टर शैलेन मुखर्जी मिल गए जिनका मकान उस छोटी बस्ती में बांस के घेर के भीतर था। बाहर एक छोटा बोर्ड टंगा था--शैलेन मुखर्जी होम्योपैथ। डॉक्टर मुखर्जी बूढ़े हो चुके थे मिलने पर बोले- मैं तो कुछ नहीं जानता हूं। सिर्फ छोटी मोटी बीमारी बगैरह ही इलाज करता हूं जैसे सर्दी खांसी पेट दर्द आदि इस हल्की-फुल्की प्रैक्टिसि में अपना पेट पालता हूं, गुजारा करता हूं ।आप गलती से मेरे पास आ गए हैं किसी बड़े डॉक्टर से दिल्ली में दिखाइए। शशि रंजन जी ने कहा मेरे गुरु ने आपके पास भेजा है ,अतः गुरु का आदेश शिरोधार्य है कर मैं आपके पास आया हूं। आपसे ही मेरे बेटे का इलाज करना है। मुखर्जी ने कहा आपके गुरु महाराज ने आपको मेरे पास क्यों भेजा मुझे समझ में नहीं आता है। फिर भी जब आप इतनी दूर से गुरू की बातों पर भरोसा कर आए हैं तो शाम को आइएगा मैं एक तेल बना कर दूंगा। गुरु का पुण्य स्मरण कर आप अपने पुत्र की कमर पर लगा दीजिएगा साथ-साथ किसी बड़े डॉक्टर से भी उसे जरूर दिखाइएगा संभावना है आपका लड़का ठीक हो जाएगा।
बाबा नाम केबलम
डॉक्टर मुखर्जी का बनाया तेल रात में लड़के को लगाया गया, दूसरे दिन सुबह में आधा दर्द ठीक हुआ नजर आया। उसी तेल को लगाने सेएक सप्ताह में वह दर्द मुक्त होकर बिल्कुल ठीक सीधा चलने लगा। साधकों- शिष्यों- भक्तों में यह रहस्य बना रहा कि आखिर डॉक्टर सेलेन मुखर्जी मे कौन सी विशेषता थी जिसे बाबा ने उन्हीं से इलाज की बात कहा, तथा सचमुच लड़का उन्हीं उनकी इलाज से ठीक भी हो गया। उन्होंने बाबा से आग्रह किया कि इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए। साधकों- भक्तों का आ ग्रह देखकर बाबा ने बताना शुरू किया। उन्होंने कहा-- डॉक्टर सेलेन मुखर्जी पिछले जन्म में बंगाल के ढाका के पास बहुत बड़ा जमींदार और अत्यंत नेक आदमी था। वह शांत स्वभाव का व्यक्ति था। यह लड़का( इस जन्म में शशि रंजन जी का वह रोगी पुत्र) पूर्व जन्म में डॉक्टर मुखर्जी का नालायक पुत्र था तथा सेलेन बाबू को बहुत परेशान किया करता था शराब के लिए पैसा मांगने पर यदि शैलेन बाबू इनकार कर देते थे तब उन्हें वह मारता भी था। इस लड़के ने उन्हें इतना तंग किया कि इस दुख से उबकर उनकी मृत्यु हो गई । मुखर्जी के श्राप से ही इस जन्म में इस लड़के की कमर में दर्द रहता है तथा वह कमर सीधा कर नहीं चल सकता है । मैंने शशी रंजन को डॉक्टर सेलेन मुखर्जी के पास इसलिए भेजा कि यदि वह( शैलेन मुखर्जी) इसकी हालत देख तरस खाकर सोचेंगे कि प्रभु! इसको अच्छा कर दीजिए तो अच्छा हो जाएगा ।मुखर्जी ने अपने अंतरतम से दिल से उसके स्वस्थ होने की इच्छा की, इसीलिए वह निरोग हो गया,, उसका बरसों से पीछा नहीं छोड़ने वाला कमर दर्द ठीक हो गया, और वह सीधा कर चलने के काबिल हो सका । प्रभु की लीला अद्भुत है उन पर समर्पण कल्याण का एकमात्र पथ है ।
बाबा नाम केबलम
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